To the free man, the country is the collection of individuals who compose it, not something over and above them. He is proud of a common heritage and loyal to common traditions. But he regards government as a means, an instrumentality, neither a grantor of favors and gifts, nor a master or god to be blindly worshipped and served. - Milton Friedman

Wednesday, 31 August 2011

Abolish useless/arbitrary laws

From the Manushi's attempt in reducing corruption by getting abolished few of the MANY Useless Laws..

"Even the best of Lokpals cannot curb routine corruption and tyranny if the ground rules don't change."
"We need to change the nature of power in India."


Dumping Arbitrary Laws
Another example: Manushi has succeeded in bringing about a dramatic fall in bribes and harassment for cycle rickshaw owners because in response to Manushi's petition challenging bribe-friendly arbitrary rules and regulations for plying rickshaws the Delhi High Court struck them down as unconstitutional in April 2010. Here is a small sample of those absurd regulations:
1) Plying a rickshaw without an owner's and a puller's license is illegal but unlike for motor vehicles one cannot get a license on demand. People are kept waiting for years after applying for a puller's or owner's license while municipal officials are not required to give any explanation for denying rickshaw licenses. However, officials have the power to confiscate and destroy a rickshaw operating without these two licenses.
2) While a person is entitled to own as many cars, trucks or airplanes as they want and can afford, it was illegal to own more than one rickshaw. A person owning multiple vehicles was liable to having his/her vehicles confiscated and destroyed.
3) A person owning a taxi or bus may hire whoever she likes to ply that vehicle or give it out on rent. But renting out a rickshaw invites confiscation and destruction of the vehicle. This despite the fact that vast majority of pullers are seasonal migrants who prefer to rent their vehicles so that they are free to visit their villages as and when necessary without having to worry about its being stolen or destroyed while they are away.

Monday, 29 August 2011

Which Vivekananda , Anna is inspired from ???

Anna says , He is inspired with Vivekananda's life and his sayings...

He is misguiding people . I have no problem if people are happy that way but Please don't use the name of Vivekananda to impose his own views on others. This is it..

Infact Medha Patkar & Shanti bhushan   against liberlization (Liberty) sitting besides him , I have no doubts that he is a dictator and anti FREEDOM.(Anna had problem with some people sharing the stage with baba Ramdev )



Friday, 26 August 2011

Socialism Vs Capitalism


मुक्त बाज़ार की नैतिकता


(I wrote this essay for a competition on Center of Civil Society , but realized later that , I was late to submit it. Just publishing here on the blog now)

Two MUST WATCH VIDEO's before reading .. You might skip reading if you can watch the video's




उफ़  ये  भिनभिनाने  की  आवाज़   .. उफ़  ये  खुजली  … … और  एक  ज़ोरदार  ताली  की  आवाज़  .. हाथों  में  नज़र  गई,  एक  अजीब  सी  ख़ुशी  का  एहसास  हुआ  , दिखा कुछ  लाल  रंग  और  एक  मच्छर  की  ना  पहचाने  जाने  वाली  लाश . खून  कुछ  मेरा  और  उस  मच्छार  का ..

एक  दिन  बाद  .. कुछ  हालत  खराब  हुई  .. और  खुद  अपना  खून  निकलवाया  … उसके  लिए  ख़ुशी  से   अपनी  मेहनत  के  पैसे  भी  दिए  ..दर्द  भी  सहा  ..खून  भी  कही  ज्यादा  दिया ..  (जितना  उस  मच्छार  के  पीने  पर  मैंने  उसका  बेदर्दी  से  कतल  कर  दिया  था ) .अब  जब  दोनों  बार   मैंने  अपना  खून  ही  निकलवाना  था  .. तो  मेरे  व्यवहार  में इतना  बदलाव  कैसे  .. 

आइये  ज़रा  इस  मानव  व्यवहार  के  उदाहरण  पर  थोडा  प्रकाश  डालें  …. मच्छर  मेरी  मर्ज़ी  के  खिलाफ  मुझसे  मेरा  खून  पीने  आया  … और  ना  ही  उसके  बदले  में  मुझे  उतना कुछ  दिया  या  कुछ  और  मेरी  ज़रुरत  पूरी  की  …. और  तो  और  मुझे  खतरनाक  बिमारी  देने  सकने   में  ये  मच्छार  का  जवाब  नही | ..
अब  दूसरी  और  नज़र  घुमाएं  तो  .. मै  अपनी  मर्ज़ी  से  अपना  खून  की  जांच  करवाने  गया  ..   अब  यदि   मै  खुद  से  अपने  खून  की  जांच  करता  तो  ना  जाने  कितनी  पढाई  करता  फिर  जांच  करने  वाले  यन्त्र  बनाता , कितनी  जिन्दगियां  लग  जाती  .. पर  ये  किया  .. इतने  अलग  अलग  लोगों  ने  मेरे  लिए  ये  सब  काम  कर  दिए  है  .. और  मुझे  उसके  लिए  उन  सबको  छुट्टे  भी  नहीं   दे  रहा  हूँ .. … अब  यहाँ  मैंने  अपनी  सेहत   की  जांच  और  राहत  पाई  कुछ  पैसों  के  बदले  …

तो  इन  दोनों  व्यवहारों   में  फर्क , मेरी  मर्ज़ी  और  लेन   देन  या  मुनाफा  था  .. अब  यह  लिखने  की  ज़रुरत  नही  के  कौनसा  व्यवहार  नैतिक  था  और  कौनसा  अनैतिक  ..  और  किया  मै  लिखूं  ???

हमारे यहाँ मच्छरों  की आबादी बहुत  अधिक है , खूब परेशान करते हैं ! अब मै एक इंजिनियर जो मोबाइल networks को बेहतर बनाता हूँ  पर मच्छर भगाने में असमर्थ , या तो उनके साथ जीना सीख लूं या किसी और मनुष्य का सहारा लूं जो मच्छरों से छुटकारा दिला सके ! बाज़ार में ऐसे अनेकों यन्त्र मिलते है जिनसे मेरी ज़रुरत पूरी होती है  ! बाज़ार में अपनी ज़रुरत के बदले मै कुछ कीमत अदा करता हूँ और कोशिश करता हूँ के कम से कम कीमत देकर अच्छी वस्तु लूं !   अब इस यन्त्र को खरीदने से मुझे और विक्रेता दोनों को लाभ पंहुचा , दोनों खुश हुए !

इसी प्रकार मनुष्य की काबलियत और ज़रूरतें भिन्न भिन्न है और असीमित भी है , मनुष्य की प्राकृतिक व्यवहार में वे एक दुसरे की ज़रूरतें अपनी अपनी काबलियत से पूरी करतें है ! मनुष्य अपनी काबलियत की कीमत तय करते है और ज़रूरतमंद उस कीमत को आंकता है और जिससे उत्पादक और उपभोगता में कड़ी बनती  है ! जहां उत्पादक और उपभोगता स्वयं कीमत तय  करें वेह मुक्त बाज़ार की श्रेणी में आता है 

अब बहुत से उत्पादक  ( देसी और विदेसी ) ऐसे यन्त्र बनाते है , और प्रतिस्पर्धा में लाभ कमाने के लिए  कम कीमत और बेहतर गुणवता लेकर आते है , अब उपभोगता को बहुत से विकल्प मिल जाते है वेह अपनी हैसियत और ज़रुरत के अनुसार विनिमय करता है ! येदी कोई उत्पादक घटिया यन्त्र बेचता है तो उसका व्यापार बंद होने की संभावना बहुत अधिक है उपरोक्त स्तिथि केवल मुक्त बाज़ार में पाई जाती है ! पर येदी प्रतिस्पर्धा ना हो या कम हो तो उत्पादक का गुणवत्ता से ध्यान कम हो जाएगा क्यूंकि उपभोगता  के पास और कोई विकल्प नही है या मर्ज़ी कम होती है   , यहाँ इन दोनों के व्यवहार में अनैतिकता आना स्वाभाविक है ! क्यूंकि ऐसी स्तिथि में एक पक्ष अधिक लाभ कमाता है और दूसरा कम ! एक की गलती का परिणाम दुसरे  को भुगतना  होता है ! मुक्त बाज़ार में गलती करने वाला स्वयं परिणाम झेलता है और सीखता है !

मुक्त  बाज़ार  जहां  खरीदने  या  बेचने  में  कोई  रोक  टोक  नही  होती  .. ना  देश  के  आधार  पे  ना  ही  वस्तु  विशेष  के  आधार  पे  , वहां  अनेकों  विक्रेता  और  खरीद  दार  होते  है  , एक   व्यक्ति  एक  ही  समय  पे  विक्रेता  और  खरीददार  भी  होता  है  , क्यूंकि  एक  व्यक्ति  का  उपभोग  उसके  द्वारा  उत्पादित  वस्तु  से  कहीं  अधिक  होता  है  . ग्राहक  की  मर्ज़ी  अधिक  होती  है  और  मुनाफा  भी   .. जिससे  मुनाफा  या  लाभ  और  लाभ  से  पनपा  अच्छा  व्यवहार  से  नैतिकता  ही  बदती  है  और  कुछ  नहीं.

कुछ  तथ्यों के आधार पर , कुछ उत्पादकों या वस्तुओं पर अनेकों प्रकार से रोक लगाईं जाती , कोई देश की सरकार अपने देश की  उत्पादित वस्तु  विशेष का वर्ग विशेष को प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए बाहरी वस्तुओं की देश में बिक्री पर रोक लगाती है  इस रोक से दुसरे अनेकों लोगों पर एक अतिरिक्त भार पड़ता है , वेह वही वस्तु कम कीमत में खरीदने के विकल्प से वंचित  हो जाते है | अपने कमाए हुए धन का बेहतर उपयोग नही कर पाते , फायदा केवल कुछ वर्ग विशेष  का होता है ! वेह वर्ग विशेष भी प्रतिस्पर्धा में अभाव  बनायीं हुई वस्तु उसी श्रेणी की वस्तुओं की तुलना में  श्रीण हो  जाती है  ! ऐसी स्तिथि में एक व्यक्ति का लाभ दुसरे का नुक्सान बन जाता है , जो अनैतिकता जो जन्म देने में सक्षम है 
बाजारों पर प्रतिबन्ध  लगाने से , रोज़गार के अवसरों पर बुरा असर पड़ता है , जब व्यक्तियों के पास आय के साधन कम हो जाते है तो वे अनैतिकता का रास्ता अपना सकते है और चोरी चकारी में जा सकते है ! एक कहावत भी है खाली दिमाग शैतान का घर | 

बदती  आबादी  के  साथ  अधिक  व्यापार  की  आवश्यकता   है  जो  अपने  आप  मुक्त  वातावरण   में  , मुनाफे  से  प्रेरित  होकर अग्रसर हो  | . केवल  मुक्त  बाज़ार  ही   इन   सभी    व्यवहारों  को  साथ  में  लेकर  चल  सकता  है  , धरती  पर  जगह  जगह  पर  विभिन्न  प्रकार  के  लोग  विभिन्न  परिस्तिथियों  में  उत्पादन  और  उपभोग  करते  है  , सभी  का  मुनाफा  इसी  में  है  के   , सस्ता  और  बेहतर  उत्पादक  से  खारेदें  . पाबंदियों  से  उपभोगता  के  मुनाफे  पर  असर  पड़ता  है  . और  अच्छी  और  सस्ती  उत्पादन  को  अप्रेरित   करता  है |

धन्यवाद ! 

Jab mai chota baccha tha

When I was a young child , I used to think..

1) There is so much poverty and the budget is always in deficit, so why cant the govt. print money and distribute ?

2) Population is the problem for India ..Govt force is required to check the population growth. India can't become developed until population is reduced.

3) Corruption is the root cause of all the problems.

4) People should not take money for education .

But then I GREW UP ...and learned and am still LEARNING that..

1) Govt printing money causes inflation. Hence, govt. should be out of many businesses including that of printing money.   Read Funny Money ...by Sauvik .. excellent article

2) Population is an asset for the country/World,  Population is a resource , Population causes prosperity & Sanjeev Sabhlok's excellent blog on population.

3) Corruption is the least of problem of India . Its the socialist system of governance that causes Corruption , Poverty , and Illiteracy.

4) Desire of Profit/Making money is the best way to spread education or any other business for that matter.. Would you do a business that does not generate any profit? Most of the governments of the world actually do that ;) Sanjeev's Blog offers a solution

But I found that my Govt didn't grow up and they still think the same as I did in my BACHPAN...  How can they teach , when they themselves need to be educated..They hold monopoly of printing money and they keep printing money for budget deficit.Till that money reaches the needy , its already inflated.. They have ministry and many programs , schemes that teach people to control population. They keep making laws and appoint people to check corruption and do nothing for the existing socialist policies..They made Right to Education Act and made profit making in education sector "illegal".

Professor Milton Friedman rightly said .."Governments never learn. Only people learn." 
What more do you expect .. the same government is policing us like parents ...

I think now that I have grown up  , I Should participate in elections and go to the Parliament with other grown up people like me and bring about a positive change.. I took the first step and joined the Freedom Team of India (FTI) .. When are you joining it and making a positive contribution??? Please also read the book Breaking Free of Nehru which has the blue print of FTI's mission.