(I wrote this essay for a competition on Center of Civil Society , but realized later that , I was late to submit it. Just publishing here on the blog now)
Two MUST WATCH VIDEO's before reading .. You might skip reading if you can watch the video's
उफ़ ये भिनभिनाने की आवाज़ .. उफ़ ये खुजली … … और एक ज़ोरदार ताली की आवाज़ .. हाथों में नज़र गई, एक अजीब सी ख़ुशी का एहसास हुआ , दिखा कुछ लाल रंग और एक मच्छर की ना पहचाने जाने वाली लाश . खून कुछ मेरा और उस मच्छार का ..
Two MUST WATCH VIDEO's before reading .. You might skip reading if you can watch the video's
उफ़ ये भिनभिनाने की आवाज़ .. उफ़ ये खुजली … … और एक ज़ोरदार ताली की आवाज़ .. हाथों में नज़र गई, एक अजीब सी ख़ुशी का एहसास हुआ , दिखा कुछ लाल रंग और एक मच्छर की ना पहचाने जाने वाली लाश . खून कुछ मेरा और उस मच्छार का ..
एक दिन बाद .. कुछ हालत खराब हुई .. और खुद अपना खून निकलवाया … उसके लिए ख़ुशी से अपनी मेहनत के पैसे भी दिए ..दर्द भी सहा ..खून भी कही ज्यादा दिया .. (जितना उस मच्छार के पीने पर मैंने उसका बेदर्दी से कतल कर दिया था ) .अब जब दोनों बार मैंने अपना खून ही निकलवाना था .. तो मेरे व्यवहार में इतना बदलाव कैसे ..
आइये ज़रा इस मानव व्यवहार के उदाहरण पर थोडा प्रकाश डालें …. मच्छर मेरी मर्ज़ी के खिलाफ मुझसे मेरा खून पीने आया … और ना ही उसके बदले में मुझे उतना कुछ दिया या कुछ और मेरी ज़रुरत पूरी की …. और तो और मुझे खतरनाक बिमारी देने सकने में ये मच्छार का जवाब नही | ..
अब दूसरी और नज़र घुमाएं तो .. मै अपनी मर्ज़ी से अपना खून की जांच करवाने गया .. अब यदि मै खुद से अपने खून की जांच करता तो ना जाने कितनी पढाई करता फिर जांच करने वाले यन्त्र बनाता , कितनी जिन्दगियां लग जाती .. पर ये किया .. इतने अलग अलग लोगों ने मेरे लिए ये सब काम कर दिए है .. और मुझे उसके लिए उन सबको छुट्टे भी नहीं दे रहा हूँ .. … अब यहाँ मैंने अपनी सेहत की जांच और राहत पाई कुछ पैसों के बदले …
तो इन दोनों व्यवहारों में फर्क , मेरी मर्ज़ी और लेन देन या मुनाफा था .. अब यह लिखने की ज़रुरत नही के कौनसा व्यवहार नैतिक था और कौनसा अनैतिक .. और किया मै लिखूं ???
इसी प्रकार मनुष्य की काबलियत और ज़रूरतें भिन्न भिन्न है और असीमित भी है , मनुष्य की प्राकृतिक व्यवहार में वे एक दुसरे की ज़रूरतें अपनी अपनी काबलियत से पूरी करतें है ! मनुष्य अपनी काबलियत की कीमत तय करते है और ज़रूरतमंद उस कीमत को आंकता है और जिससे उत्पादक और उपभोगता में कड़ी बनती है ! जहां उत्पादक और उपभोगता स्वयं कीमत तय करें वेह मुक्त बाज़ार की श्रेणी में आता है
अब बहुत से उत्पादक ( देसी और विदेसी ) ऐसे यन्त्र बनाते है , और प्रतिस्पर्धा में लाभ कमाने के लिए कम कीमत और बेहतर गुणवता लेकर आते है , अब उपभोगता को बहुत से विकल्प मिल जाते है वेह अपनी हैसियत और ज़रुरत के अनुसार विनिमय करता है ! येदी कोई उत्पादक घटिया यन्त्र बेचता है तो उसका व्यापार बंद होने की संभावना बहुत अधिक है उपरोक्त स्तिथि केवल मुक्त बाज़ार में पाई जाती है ! पर येदी प्रतिस्पर्धा ना हो या कम हो तो उत्पादक का गुणवत्ता से ध्यान कम हो जाएगा क्यूंकि उपभोगता के पास और कोई विकल्प नही है या मर्ज़ी कम होती है , यहाँ इन दोनों के व्यवहार में अनैतिकता आना स्वाभाविक है ! क्यूंकि ऐसी स्तिथि में एक पक्ष अधिक लाभ कमाता है और दूसरा कम ! एक की गलती का परिणाम दुसरे को भुगतना होता है ! मुक्त बाज़ार में गलती करने वाला स्वयं परिणाम झेलता है और सीखता है !
मुक्त बाज़ार जहां खरीदने या बेचने में कोई रोक टोक नही होती .. ना देश के आधार पे ना ही वस्तु विशेष के आधार पे , वहां अनेकों विक्रेता और खरीद दार होते है , एक व्यक्ति एक ही समय पे विक्रेता और खरीददार भी होता है , क्यूंकि एक व्यक्ति का उपभोग उसके द्वारा उत्पादित वस्तु से कहीं अधिक होता है . ग्राहक की मर्ज़ी अधिक होती है और मुनाफा भी .. जिससे मुनाफा या लाभ और लाभ से पनपा अच्छा व्यवहार से नैतिकता ही बदती है और कुछ नहीं.
कुछ तथ्यों के आधार पर , कुछ उत्पादकों या वस्तुओं पर अनेकों प्रकार से रोक लगाईं जाती , कोई देश की सरकार अपने देश की उत्पादित वस्तु विशेष का वर्ग विशेष को प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए बाहरी वस्तुओं की देश में बिक्री पर रोक लगाती है इस रोक से दुसरे अनेकों लोगों पर एक अतिरिक्त भार पड़ता है , वेह वही वस्तु कम कीमत में खरीदने के विकल्प से वंचित हो जाते है | अपने कमाए हुए धन का बेहतर उपयोग नही कर पाते , फायदा केवल कुछ वर्ग विशेष का होता है ! वेह वर्ग विशेष भी प्रतिस्पर्धा में अभाव बनायीं हुई वस्तु उसी श्रेणी की वस्तुओं की तुलना में श्रीण हो जाती है ! ऐसी स्तिथि में एक व्यक्ति का लाभ दुसरे का नुक्सान बन जाता है , जो अनैतिकता जो जन्म देने में सक्षम है
बाजारों पर प्रतिबन्ध लगाने से , रोज़गार के अवसरों पर बुरा असर पड़ता है , जब व्यक्तियों के पास आय के साधन कम हो जाते है तो वे अनैतिकता का रास्ता अपना सकते है और चोरी चकारी में जा सकते है ! एक कहावत भी है खाली दिमाग शैतान का घर |
बदती आबादी के साथ अधिक व्यापार की आवश्यकता है जो अपने आप मुक्त वातावरण में , मुनाफे से प्रेरित होकर अग्रसर हो | . केवल मुक्त बाज़ार ही इन सभी व्यवहारों को साथ में लेकर चल सकता है , धरती पर जगह जगह पर विभिन्न प्रकार के लोग विभिन्न परिस्तिथियों में उत्पादन और उपभोग करते है , सभी का मुनाफा इसी में है के , सस्ता और बेहतर उत्पादक से खारेदें . पाबंदियों से उपभोगता के मुनाफे पर असर पड़ता है . और अच्छी और सस्ती उत्पादन को अप्रेरित करता है |
धन्यवाद !
धन्यवाद !
Nyc essay. I work with CCS, why dont you send this to us. We had increased the dead line. Send us the copy ASAP
ReplyDeleteSadaf Hussain
Associate,Program
CCS
Thanks Sadaf,
ReplyDeleteJust converting it in required font.
I will send it ASAP.
Regards,